Saturday, October 24, 2015

भारतमा सामाजिक असमानता प्रती असन्तुष्ट ९० दलितले एक साथ बौद्ध धर्म ग्रहण


गांधीनगर -कार्तिक ७, विभेद विरुद्ध अभियान ।
गुजरात के जूनागढ़ में मोदी के राज में ही करीब दो साल पहले पांच हजार दलितों ने धर्म परिवर्तन कर बौद्ध धर्म अपना लिया था. उस घटना के ठीक 2 साल बाद अहमदाबाद के ढोलका कस्बे में 90 दलितों ने समाज में मौजूद गैरबराबरी से मुक्ति के लिए बौद्ध धर्म अपना लिया है. 

गुजरात बौद्धिष्ठ अकादमी द्वारा ढोलका कस्बे में गुरूवार को इस परिवर्तन के लिए कार्यक्रम आयोजित कराया गया था. पोरबंदर के महान अशोक बुद्ध विहार के धम्म प्रचारक भिक्षु प्रज्ञा रत्न से दीक्षा लेने वालों की उम्र 25-35 वर्ष के बीच है. दीक्षा लेने वालों में एमबीए डिग्रीधारी 27 वर्षीया भामिनी डेलवाडिया भी हैं जिन्होंने अपने परिवार के चार सदस्यों के साथ दीक्षा ली है. भामिनी अहमदाबाद के जीवराज पार्क क्षेत्र की रहने वाली हैं. कार्यक्रम में लगभग 500 लोगों ने भाग लिया.
भामिनी ने कहा कि वे सबके लिए समानता में विश्वास रखती है. हिन्दुत्व में उन्हें यह समानता नहीं मिली. मुझे डॉ. अम्बेडकर के आदर्शों में आस्था है, इसीलिए मैंने बौद्धधर्म ग्रहण किया है.भामिनी के आईआईएम से पोस्ट ग्रेजुएट पति, उसके ससुर और देवर ने भी बौद्ध धर्म की दीक्षा ली है. हेमलता सोनारा जो एमए कर रही हैं, भी उन नौ महिलाओं में शामिल हैं जो बौद्ध धर्म में शामिल हुई हैं.
26 वर्षीया निकिता परमार कहती हैं कि वे आंख मूंदकर हिन्दू रीति-रिवाजों में विश्वास नहीं कर सकतीं. बौद्ध धर्म अपनाने वाले एक और व्यक्ति जतिन मकवाना ने बताया कि मैंने बौद्ध धर्म से काफी कुछ सीखा है. यहां पर हिंदू धर्म की तुलना में काफी समानता है. दलित होने पर जहां कहीं भी आप जाओ लोग आपकी जाति पूछते हैं और फिर भेदभाव करते हैं. बौद्ध धर्म में ऎसा कोई वर्गीकरण नहीं है यहां सब समान है. इसलिए ऐसा धर्म अपनाना बेहतर है जो सबको बराबर मानता है बजाय उसके जिसमें जाति के आधार पर अपमानित किया जाता हो.

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