पिथौरागढ़ और नेपाल के महाकाली अंचल मे वषौं से सांस्कृतिक अदानप्रदान
चला आ रहा है ! यही वजह है कि महाकाली अंचल और पिथौरागढ़ जनपद की अधिकांश
पारम्परिक मान्यताओं में एरूपता है ! नेपाल और कुमाऊं मे लोकगाथा गायन की
तमाम बारीकियों को समझने परखने वाले ९० बर्षीय श्री झुसिया दमाई के बारे
में लोगों को खास जानकारी नहीं है ! जीवन के आखिरी पडा़व में पहुंच चुके इस
लोक कलाकर की तरफ यद्यपि अब संस्कृति प्रेमियों का भी ध्यान जा रहा है,
लेकिन लोक गायकी की इस पारम्परिक अनुशासन को भविष्य में बनाये रखने तथा इस
परम्परा को आगे बढा़ने वाले लोगों की अब भी सर्वत्र कमी है ! झुसिया दमाई
को अपने सम्मान से ज्यादा खुशी नहीं है वरन वह इस बात से चिन्तित है कि इस
परम्परा का बाहक अब आगे कौन बनेगा- झुसिया दमाई से ईन्हीं बिन्दुओं पर
अविरल बातचित हुई जिसके कुछ अशं यहां है !
आप का जन्म कब और कहां हुआ ?
आज से ९० साल पहले नेपाल के बैतडी़ बसकोट मे रनुवा दमाई के घर में मेरा
जन्म हुआ था ! उसके बाद बाल्यकाल में ही शादी हो गई ! तिन पत्नियां मर गई,
दो अभी जिन्दा है ! पिछ्ले ३० साल से हम लोग धरचुला तहसील के ग्राम
ढुंगातोली में रहते है !
आप ने लोकगाथा गायकी को कैसे सीखा और इसकी प्रेरणा कहां से मिली ?
जब में २० साल का था तभी से अपने पिताजी के साथ गायन शुरु कर दिया था !
दरअसल नेपाल(बैतडी़) और धरचुला के इलाकों में अपने इष्टकुल के लिए वर्षों
से हमारा एक ऐसा "कर" है कि हम चैत्र आश्विन और कर्तिक में उन देवताओं का
स्तुति गान करें ! इनमें भगवती, जगन्नाथ, पांडवगाथा, नेपाल (बैतडी़) की
त्रिपुरासुंदरी के मंदिर में आज भी हम लोग विधिवत उक्त महिनों में गाथा के
लिए जाते है ! यह प्रेरणा नहीं वल्की इष्टकुल का "कर" चुकाने के लिए आवश्यक
अनुष्ठान है !
आप विशेष रुप से भडौं गायकी जानते है- यह बताएंगे कि इस अंचल में किन वीरों की गाथाएं खास तौर पर प्रचलित है ?
भडौं कुमाऊं और नेपाल के "पकौ" यानी वीरों की गाथा है ! इसे बारातों में भी
गाया जाता है ! इस अंचल में २२ भडौं (बीरों) खास तौर पर प्रसिद्ध है,
जिसमे छुराखाती, भीम कठायत, संग्राम कार्की, सौन रौत, रन रौत, लाल सौन, सौन
माहरा, कालू भनारी, उदई छपलिया, नर सिंह धौनी आदी सामिल है ! एसा कहा जाता
है कि उस समय कत्यूर में विरमौद्यौ का राज था और २२ भडौं इस राजा के खिलाफ
वीरता पुर्वक लड़े थे !
इसके अलवा कितने वीरों की गाथाएं यहां विशेष रुप से प्रचलित है ?
इसके अलावा इस अंचल में महाभारत गाथा, जागर गाथा, विक्रम चन्द,त्रिमल चन्द,
मालुशाही,खर्कशाही, पैक, सौन. भणारी, कठायत १२ ठगुरी पैक, कलिका देवता, ३३
कोटि देवताओं की गाथाएं यहां पर गाई जती है ! ध्वज केदार, थल केदार,
शिवनाथ, छ्पलाकेदार, लटपापू, नन पापू, ठगुरी चन्द, गुंसाई गाथा, अलाइ मल्ल,
छुर मल्ल, भागी मल्ल, गांगनाथ की गाथाओं भूतात्माओं के जागर भी गाए जाता
है !
भूतात्माओं के जागर के लिए मुख्य बात भूत थानवास हो जाए ?
आज के नौसिखिया गायक सिर्फ हुड्के में थाप देकर वीर को नाचना जानते है !
किसी वीर (देवता) का डंगरिया नहीं औतर (प्रकट) रहा हो तब महाभारत में
वर्णित उस गाथा को गाते हैं ! जब द्रौपदी का चीरहरण हो रहा होता है और
पांडव असाहय से यह दृश्य देखते है ! जगरिया द्वरा यह प्रसंग शुल करते ही
भूत से लेकर "देवता"तक औतर जाता है ! जो भी लोक देवता है उनके भारत (बखान)
लगाने पड़ते हैं लेकिन जगरिया को उस स्रोत का पूरा ज्ञान जरूर होना चाहिए !
नेपाल और कुमाऊं गढ़वाल के लोक देवता में मूल अन्तर क्या है ?
नेपाल और कुमाऊं गढ़वाल के सभी लोक देवता एक समान प्रवति के है ! उन्हें
खुश करने के लिए जिस तरह नेपाल में गाथा गाई जाती है उसी तरह कुमाऊं गढ़वाल
में भी गाई जाती हैं ! हां, गायन और बाली में कुछ भेद हो सकते है ! मैं
खुद बैतडी़, दारचूला, महेन्द्रनगर, धनगड़ी, काठमान्डू, बेलौरी से लेकर
मुवानी, ढुंगातोली, सोराड़, कालाढुंगा, हल्द्वानी आदि स्थान पर यह गाथा गा
चुका हूं ! जब कत्यूरी का पतन हुआ तब गढ़वाल में भी ५२ ठकुरीयों ने अपने
छोटे-छोटे राज्य (गढ़) स्थापित कर लिए ! इन राजाओं के कई वीरों "पैकों" की
वीर गाथायें गढ़वाल में गायी जाती हैं, जिसे भड़, माल या पंवाडे कहते है !
वहां पर गढ़ सुम्याल, लोदी रिखोला, माधो सिंह भण्डारी, तीलू रौतेली की
गाथायें प्रमुख है !
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